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हक़ीक़त की बहस


जिस को कुछ धन हो करे हम से हक़ीक़त की बहस 

कि हमीं जानते हैं अहल-ए-तरीक़त की बहस 


क़ाज़िया हाथ बढ़ा शीशा-ए-सहबा तो उतार 

ताक़-ए-निस्याँ पे तू रहने दे शरीअत की बहस 


कर दिया मुज्तहिद-ए-वक़्त को क़ातिल झट-पट 

हम ने मस्जिद में कल ऐसे ही क़यामत की बहस 


बज़्म-ए-रिंदाना में क्या रिंद-ओ-वर'अ का चर्चा 

शैख़-साहिब है बहुत ये तो हिमाक़त की बहस 


बू-अली साथ कोई बोलते 'इंशा' को सुने 

रोज़ होती है बहम अहल-ए-बलाग़त की बहस

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